मोदी सरकार के नए कानून से परमानेंट नौकरियों को कॉन्ट्रैक्ट में बदलने का अधिकार।

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केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में मंजूर किए गए इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड, 2020 के तहत अब कंपनियां परमानेंट नौकरियों को फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट में तब्दील कर सकती हैं। बीते सप्ताह नोटिफाई किए गए इस नए कानून के चलते कंपनियों को बड़ी राहत मिली है। अब कंपनियां फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट जॉब के लिए सीधे तौर पर कर्मचारियों की नियुक्तियां कर सकती हैं। अब तक कंपनियों को इसके लिए कॉन्ट्रैक्टर्स का सहारा लेना पड़ता था। अब डायरेक्ट ऐसी भर्तियां करने से कंपनियों के खर्च में कमी आएगी। नियम के अनुसार फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स को भी परमानेंट कर्मचारियों की तरह ही सभी सुविधाएं मिलेंगी। हालांकि ऐसे वर्कर्स को नौकरी से हटाने पर कोई कम्पेन्सेशन नहीं मिलेगा, जो स्थायी कर्मचारियों को मिलता है।

इससे कंपनियों को बड़ा फायदा मिलेगा।

हालांकि यह कानून सरकार की ओर से ही लागू किए गए मार्च 2018 के नियम के मुकाबले अलग है। तब सरकार ने यह स्पष्ट किया था कि कोई भी औद्योगिक संस्थान परमानेंट कर्मचारियों के पदों को फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट में तब्दील नहीं कर सकता। हालांकि अब इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड, 2020 में ऐसा कोई नियम नहीं है। ऐसे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि भविष्य में मार्केट में परमानेंट जॉब्स की कमी देखने को मिल सकती है। इसकी एक वजह यह भी है कि सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट की कोई लिमिट नहीं रखी है। इसके अलावा यह भी तय नहीं है कि कितनी बार कॉन्ट्रैक्ट को रिन्यू किया जा सकता है।

जानकारों का कहना है कि यह नियम चिंताजनक है। फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट का स्वागत है, लेकिन इसमें कुछ नियम भी होने चाहिए थे। फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट की शुरुआत में यूरोप में 2000 में हुई थी, लेकिन इसे परमानेंट जॉब की ओर एक कदम माना जाता था। अब ऐसी स्थिति में कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी करने वाले स्थायी नौकरी की ओर नहीं बढ़ सकेंगे। नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस पीरियॉ़डिक लेबर फोर्स सर्वे 2018-19 के मुताबिक भारत में सिर्फ 4.2 पर्सेंट कर्मचारी ऐसे हैं, जो सम्मानजनक नौकरियों में हैं।

एक तरफ एक्सपर्ट्स इस नियम को लेकर चिंता जता रहे हैं, लेकिन सरकार का कहना है कि यह कानून बदलते आर्थिक हालातों के मद्देनजर बनाया गया है। परमानेंट नौकरियों को कॉन्ट्रैक्ट जॉब्स में तब्दील करने का कोई इरादा नहीं है।