अर्णव जिंदा या मुर्दा कौन होगा जादा फायदेमंद, राजनीतिक दलों में मंथन जारी।

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विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का आज के हालात देखकर ऐसा लग रहा है जैसे “लोक” शब्द लोकतंत्र में से गायब हो गया है। और केवल “तंत्र” ही बचा है जिसे सत्ताधारी पार्टियां अपने अपने फायदे के अनुसार इस्तेमाल कर रही है केंद्र सरकार के अधीनस्थ राज्य सरकारों को संविधान के अलग-अलग अनुच्छेदों से बांधकर केवल और केवल अपने हित के लिए अपनी वोट बैंक को बचाने के लिए कार्य करने वाले यह राजनीतिक दल लगभग लगभग हिंदुस्तान की जनता का भरोसा पूरी तरह से खो चुके हैं। दिल्ली के जेएनयू के अंदर खुलेआम प्रदर्शन होता है खुलेआम देश को तोड़ने के नारे लगाए जाते हैं खुलेआम तिरंगे को बदनाम करने का प्रयास किया जाता है खुलेआम धार्मिक भावनाओं को आहत करने का प्रयास किया जाता है परंतु सत्ता में बैठी है सरकारें मजाल है जो किसी के ऊपर किसी भी प्रकार की कानूनी कार्यवाही करके किसी भी प्रकार का संदेश दे वहीं दूसरी तरफ शाहीन बाग प्रदर्शन के नाम पर हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली की मुख्य सड़क को महीनों महीनों तक जाम कर दिया जाता है।

राष्ट्र विरोधी गतिविधि को रोकने वह अपराधियों को सजा देने में केंद्र सरकार चाहती तो चंद घंटों में बहुत बड़ी कार्यवाही करके देश के युवाओं को एक सार्थक संदेश दे सकती थी परंतु यह दुख की बात है कि केंद्र सरकार ने ना केवल अपने आंखों पर पट्टी बांधी बल्कि अपने मुंह पर पट्टी बांध ली और किसी भी कार्यवाही करने से दूर रहे देश के प्रधानमंत्री एक तरफ जावेद अख्तर जो कि पूरे दिन राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के सहायक रहते हैं राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहित करते हैं उनकी पत्नी की एक मामूली सी एक्सीडेंट में खो जाती है हमारे देश के प्रधानमंत्री अपने ट्विटर अकाउंट से उसके स्वस्थ जीवन और उसके जल्द स्वस्थ होने की मंगल कामना करते हैं वही इस देश के अंदर रोज बेटियों को भेड़िए नोच नोच कर खाते हैं लेकिन प्रधानमंत्री जी की संवेदना कहीं दिखाई नहीं देती देश के सर्वोच्च पद पर बैठे प्रधानमंत्री जी से इस प्रकार का भेदभाव देखकर जनता के मन में आज का फैलाव तो होता है परंतु किसी भी प्रकार का विकल्प ना देखकर जनता अपना मन मार कर रह जाती है जिस प्रकार से साल 2014 में जनता ने जो जनादेश दिया था एक रामराज्य आने का जो विश्वास जनता को था 2020 आते-आते लोगों को लगने लगा है कि कहीं हमारा अस्तित्व मिट ना जाए, इन राजनीतिक दलों की भक्ति और प्रेम के तहत सम्मान और स्वाभिमान खत्म ना हो जाए इस बात का डर अब जनता को सताने लगा है पिछले 3 दिन से महाराष्ट्र के अंदर राज्य सरकार द्वारा जिस प्रकार से इस लोकतांत्रिक देश में तंत्र को तांत्रिक के रूप में इस्तेमाल करके जो नंगा नाच दिखाने का प्रयास कर रहा है उस नंगे नाच पर केंद्र में बैठी सरकार चाहे तो 10 मिनट में कार्यवाही करवा सकती है परंतु नहीं अब ऐसा लगने लगा है कि राजनीतिक पार्टियां उस समय के इंतजार में है कि कब इन राजनीतिक दलों के नेता यह कहते नजर आए कि “अर्णब गोस्वामी की शहादत बेकार नहीं जाएगी”।

अर्णव गोस्वामी को पिछले 3 दिन से महाराष्ट्र की नपुंसक सरकार अपनी उंगलियों पर नचा रही है। लेकिन केंद्र सरकार की चुप्पी आने वाले समय में केंद्र सरकार के बहुत बड़े वोट बैंक के खेमे को तहस-नहस कर देगी जैसा माननीय मोदी जी कहते हैं हिंदुस्तान युवाओं का देश है और पिछले 3 दिन में वर्तमान सरकार ने वर्तमान मोदी सरकार ने ना जाने कितने युवाओं को खो दिया है वह लोग मोदी सरकार के समर्थन में आने से पहले सोचेंगे क्योंकि अर्णव गोस्वामी जैसे ताकतवर व्यक्ति के साथ अगर राज्य सरकार गलत कर सकती है तो हम आम आदमी का तो जीना ही दूभर हो जाएगा। केंद्र में बैठी सरकारों को मैं बता देना चाहता हूं कि देश का युवा जाग चुका है मानवता को मारकर इस तरह के कार्य ना करें जिससे यही युवा आप को श्राप देने लग जाएं एससी एसटी एक्ट जैसे काले कानून को पास करा कर आप पहले से ही ना जाने कितने युवाओं की आंखों में खटक ने लगे हैं और उसके बाद 10 वर्ष का जातिगत आरक्षण बढ़ाकर आपने अपने खिलाफ देश के करोड़ों युवाओं को कर लिया है और फिर जेएनयू अलीगढ़ यूनिवर्सिटी जामिया मिलिया इस्लामिया और साइन बाग जैसे देशद्रोही गतिविधियों पर रोक ना लगा कर अरनव गोस्वामी जैसे राष्ट्रवादी व्यक्ति के खिलाफ हो रही साजिश पर कुछ ना बोल कर आप प्रत्येक मिनट में युवाओं को खुद से होते जा रहे हैं अभी भी वक्त है संभल जाइए समय कभी किसी का एक जैसा नहीं रहता।