कृषि कानूनों पर बहस, किसानों का धरना और केंद्र सरकार की सफाई सब जारी है। अंतरराष्ट्रीय मंच तक उछल चुके इस बीच कृषि कानून के मुद्दे पर अब भी लोगों में गलतफहमियां बनी हुई हैं। इन गलतफहमियों के चलते ही विरोध प्रदर्शन बढ़ता जा रहा है। लोगों, किसानों के बीच क्या-क्या गलतफहमियां हैं और उनकी सच्चाई यहां कुछ हद तक साफ करने की कोशिश की गई है।
गलतफहमी नंबर 1: बिल संवैधानिक रूप से सही नहीं हैं क्योंकि कृषि, मार्केट और खेती की संरचनाएं राज्य का इशू हैं।
सच: बिल सेंवैधिनाक रूप से सही हैं क्योंकि केंद्र सरकार अंतर-राज्यीय व्यापार पर कानून ला सकती है, इसमें खेती भी शामिल है।
दूसरी गलतफहमी: इस बिल से किसानों की जमीन को सरकार अमीर व्यापारियों, उद्योगपतियों को सौंप देना चाहती है।
असलियत: ऐसा कुछ नहीं है. इसमें उलटा नियम है कि जिससे व्यापारी, उद्योगपति किसी किसान को परेशान नहीं कर पाएगा।इसमें विवाद को सीमित समय में सुलझाने का भी नियम है।मतलब पहले की तरह खरीद की रकम को लेकर विवाद लटके नहीं रहेंगे।
तीसरी गलतफहमी: कॉन्ट्रेक्टर और बड़े कॉर्पोरेट घराने किसानों को तंग करेंगे।
असलियत: जिस कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग को लेकर ऐसी आंशका जताई जा रही हैं वह पहले से कई राज्यों में हो रही है. वह भी आज या कल ये नहीं बल्कि दशकों से।बहुत से राज्यों में कॉफी, चाय, गन्ना और कॉटन की कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग होती है. जैसे पश्चिम बंगाल, पंजाब में PepsiCo और हरियाणा में SABMiller यही काम कर रही है।
चौथी गलतफहमी: एनडीए सरकार कृषि उपज मंडी समिति (APMC) नियम को खत्म करना चाहती है।
सच्चाई: असल में कृषि कानूनों में APMC एक्ट से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई हैै। APMC से बाहर होने वाली खरीद-बिक्री को इसमें कवर किया गया है। नियमों के मुताबिक, अगर किसान APMC के बाहर फसल बेचना चाहता है तो कानून उसे और मजबूत करेंगे।
पांचवी गलतफहमी: किसानों को बाजार की ताकतों के सामने कमजोर बनाएंगे नए कृषि कानून।
सच्चाई: बिलों से किसानों की कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग में एंट्री के रास्ते खुले हैं। साथ ही साथ यह साफ किया गया है कि फसल अच्छी हो इसके लिए जरूरी सामान की जिम्मेदारी फसल के खरीददार की होगी। इसमें खेती से जुड़े उपकरण, औजार तक शामिल हैं। इसके साथ फसल का रिस्क भी खरीददार का होगा। मतलब अगर किसी प्राकृतिक आपदा से फसल खराब हो जाती है तो किसान को इसके लिए किसान को दोषी की तरह नहीं देखा जाएगा।
गलतफहमी नंबर 6: कृषि कानून आने से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म हो जाएगा।
सच्चाई: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाता है. इसमें सरकार डायरेक्ट किसानों से फसल खरीदती है। कृषि बिलों में MSP का जिक्र ही नहीं है। मतलब इसमें इसे छेड़ा नहीं गया है बल्कि बस कुछ नई चीजों को जोड़ा गया है। सरकार की तरफ से भी लगातार कहा जा रहा है कि MSP खत्म नहीं किया जाएगा।अब सरकार इसे लिखकर देने को भी तैयार है। बता दें कि एक पक्ष यह भी है कि पिछले 5 सालों को देखा जाए तो MSP लगातार बढ़ा है।