एक बहुत प्रचलित कहावत है हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और इसी कहावत को चरितार्थ कर रहा है दिल्ली का लोक नायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल जहाँ कहने को तो हर सुविधा उपलब्ध है पर कोई यह नहीं बताता कि सुविधा व्यक्ति की रसूख देखकर दी जाती है ना कि परेशानी।अभी कुछ समय पहले इसी अस्पताल में एक व्यक्ति जो पूर्णता स्वस्थ था और कोरोना पाजिटिव होने पर गलत देखभाल और लापरवाही के नाते अपनी जान खो बैठा और पीछे छोड़ गया एक असहाय परिवार जो अब भी दर दर भटक रहा यह सोचकर की आखिर क्यों भरोसा किया हर उस खोखले वादे पर जो शासन और प्रशासन ने किए थे और जिस वजह से उन्होंने खो दिया परिवार के मुखिया को।
वही दूसरी ओर वही अस्पताल अपने चमत्कार और कार्यशैली की वजह से हर अखबार की सूर्खियों में शामिल है कि कैसे एक व्यक्ति जो बहुत सारी जानलेवा बीमारियों से पीड़ित था उसको इस अस्पताल ने अपनो के बीच लाकर खड़ा कर दिया वो भी तब जब परिवार खुद सोच रहा था कि अब वह लौटकर नहीं आऐंगे।एक नज़र में यह चमत्कार लगता है और मन हर्षित हो जाता है कि किसी को तो लाभ मिला कोई तो लौटकर आया पर दूसरे ही पल नज़र पड़ती है उस व्यक्ति की रसूख पर जो व्यंग्य करती है हर उस व्यक्ति पर जो हर व्यक्ति को एक नज़र से देखता है पर अफ़सोस की प्रशासन ऐसा नहीं सोचती शासन और प्रशासन ने एक दायरा बनाया हुआ है आम और खास लोगों के बीच जो यह तय करता है कि आपको मृत्यु से खींचकर वापस लाना है या ढकेलना है उस ओर क्योंकि आप आम इंसान है और आपका होना उनके लिए मायने नहीं रखता क्योंकि सूर्खिया आपसे नहीं बनती।
बीते कुछ दिनों पहले जिस प्रकार दिल्ली के रहने वाले शैलेन्द्र कुमार जिनके पिता की जो पूर्णता स्वस्थ थे और हाल ही में उनकी कोरोना से मृत्यु हुई या यूं कहे सरकार और प्रशासन पर विश्वास करने की सजा मिलीं और दूसरी ओर एक खास सरकारी विभाग में काम करने वाले एक ७० वर्ष के उपर के व्यक्ति जो पहले से ही कई जानलेवा बीमारी जैसे किडनी फेल सहित पांच परेशानी से ग्रस्त थे इसके बावजूद भी स्वस्थ घर वापस आए जो अपने आप में ही उस व्यवस्था को दर्शाता है जो आपको आपके पद के अनुसार मिलती है।अस्पताल का रवैया जहाँ मन को दुखी करता है वही उसका साधारण परिवार से संपर्क तक ना करना असलियत बताता है कि कैसे यह तंत्र आपको ही आपकी नज़र में गुनहगार बना देता है कि आप कोई नामदार व्यक्ति क्यों नहीं जिसकी फिक्र की जाए ना कि बस एक नंबर बना दिया जाए प्रेस वार्ता में बताने के लिए।
सच यहीं है कि आज अगर देश में एक इलाज और एक सरोकार हर व्यक्ति को मिलता तो एक खास सरकारी विभाग के स्वस्थ हुए व्यक्ति के बगल में शैलेन्द्र कुमार के पिता की भी तस्वीर होती जिसका ना होना आज लाखों लोगों की बेचैनी का कारण है क्योंकि वह भी आम इंसान है जिसकी तंत्र से अपेक्षा है और जो खुद को और अपने प्रियजनों को अस्पताल के भरोसे छोड़ देता है डाक्टर को भगवान मानकर।शैलेन्द्र कुमार को जानने वाला हर व्यक्ति हर उस स्थिति से परिचित है कि अस्पताल में इलाज से पहले अपनी पहचान बतानी जरूरी है क्योंकि कोरोना से आपको डाक्टर नहीं बल्कि आपकी पहचान ही बचा सकती है।आखिर में बस इतना ही कि भारत विश्व गुरु बने चाहे ना बने पर इस आपदा में भारत में इंसानियत होने का गुरुर खत्म हो गया है।