भारत में जीडीपी की गिरावट के लिए कौन ज़िम्मेदार

Opinion

देश में लगातार अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है। इसके लिए सरकार की नीतियां सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। पहले नोटबंदी फिर जीएसटी और उसके बाद बिना तैयारी के लॉकडाउन। इन सभी ने देश की आर्थिक स्थिति को खराब कर दिया है। इसके साथ ही सरकार के पास इनसे निपटने के लिए मौजूदा टीम में बेहतर लोगों की कमी भी है।

हमें एक बार नए सिरे से सोचने की जरूरत है कि आखिर कैसे हम खुद को वापस खड़ा करें। यह मुश्किल वक्त है, लेकिन इसको यूं ही छोड़ देना भी ठीक नहीं है। सरकार को गंभीर प्रयास करने चाहिए और लोगों को राहत देने की कोशिश करनी चाहिए। लॉकडाउन के दौरान सरकार ने जो पैकेज दिया, वह हवा—हवाई था, जिसके कारण किसी को कोई फायदा नहीं मिला है। हमें ऐसी नीतियों की जरूरत है, जिसका फायदा सीधे आम आदमी को मिले।

जीडीपी ऋणात्मक हो गई है, जो बहुत चिंता की बात है। आजादी के बाद पहली बार इतनी बड़ी गिरावट देखी गई है। पहले ही देश के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे, ऊपर से कोरोना की मार ने बेहाल कर दिया। राहत पैकेज का भी अपेक्षित सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिला। मंदी का सबसे अधिक असर असंगठित क्षेत्र पर पड़ा। संगठित क्षेत्र भी चपेट में आ गया। युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा। नौकरी पेशा लोग अपनी नौकरी खो रहे हंै। कृषि क्षेत्र के हालात थोड़े ठीक हैं। सरकार को जल्द से जल्द जनता की जेब में पैसा पहुंचाना होगा। कोरोना के साथ हमें अर्थव्यवस्था को भी संभालना होगा।

नोटबंदी और जीएसटी जैसे निर्णयों की चर्चा चलते ही इन दोनों ही नीतियों को अर्थव्यवस्था में चल रही गिरावट का जिम्मेदार बताया जाता है। उधर सरकार अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती के लिए वैश्विक कारणों को जिम्मेदार बता रही है। हकीकत यह है कि यह मंदी वैश्विक कारणों से नहीं, बल्कि आंतरिक आर्थिक नीतियों की अनियमितताओं की वजह से आई है। समय-समय पर सरकार द्वारा आम जनता को ध्यान में न रखते हुए निर्णय लिए गए हंै। भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सवाल यह है कि इस मंदी से कैसे निपटा जाए? यह तथ्य तो बिल्कुल स्पष्ट है कि किसी भी आर्थिक मंदी से निपटने के लिए निजी क्षेत्र नहीं, बल्कि सरकार ही आगे आती है। सरकार को सही फैसले लेने होंगे। सरकार को खर्च बढ़ाना होगा। यह भी ध्यान रखना होगा कि राजकोषीय घाटा बहुत अधिक न हो जाए। सरकार को रोजगार सृजन पर अधिक जोर देना होगा।

हमारे देश मे बड़ी जनसंख्या रोज कमाने खाने वालों की है। संपूर्ण तालाबंदी के दौर में एक बड़ा वर्ग ना ही पैसे कमा पा रहा था और ना ही खर्च कर पा रहा था। इस दौरान पूर्ण लॉकडाउन की स्थिति रही, तो उत्पादन तो हुआ नहीं और ना ही मांग बढ़ी, तो जीडीपी कहां से बढ़ेगी? कोरोना महामारी ने वैश्विक स्तर पर चौतरफा तबाही मचाई है, जिसका परिणाम आंकड़ों के रूप में सामने आ रहा हैं।जीडीपी की गिरावट के लिए कम से कम आम जनता तो जिम्मेदार नहीं है। राज्यों की सरकारों और केंद्र के बीच तालमेल नहीं है। रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी है।