एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर

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यार सुना तुम्हारी नौकरी चली गई?

हां यार यह कोरोना अभी पता नहीं कितनों के घर की रौशनी चुरायेगा, शायद यह वक्त ही खराब है।

ऐसे वाकये अकसर कान में बिजली जैसे गिरते आ रहे महीनों से और एक अदृश्य दुश्मन को मजबूत कर रहे पर अब बस अब कोरोना के आगे झुकने का वक्त खत्म और इस परिस्थितियों से पार होने वाला रथ निकल पड़ा है जो इस समाज के आखिरी व्यक्ति तक मुस्कान पहुंचा रहा कि हाथ बढांओ संम्भाल हम लेंगें।

एक किस्सा हमारे आगे भी आया जो पहले तो कष्टकारी लगा पर खत्म होते होते गर्व में तब्दील हो गया।

बात उसकी है जो मूलतः गोरखपुर, उत्तर प्रदेश का निवासी है और घर से दूर नौकरी करने वाले एक नवयुवक है जिनका पेशा सिनियर साफ्टवेयर डेवलपर का है। हर व्यक्ति की तरह उनकी कहानी भी कोरोना और लाकडाउन की परेशानी से होते हुए जाब सिक्योरिटी तक पहुँच गई और मन उदास करने ही वाली थी कि एक दिलचस्प मोड़ आया जब उन्होंने दूसरा पहलू बताया।

बातचीत के दौरान वह बोले हर आम व्यक्ति की तरह मेरी नौकरी मेरी उम्मीद थी और इस लाकडाउन में मैनें जो झेला वह बहुत बुरा था।हर रोज हद से बढ़कर काम और फोकस पर फिर भी भेदभाव और एक खतरा था जो बना ही हुआ था कि क्या यह नौकरी कल रहेगी या नहीं।इस बीच मन को सुकून के कुछ पल देने घर निकल गया और उस सफर और राह ने मुझे आज आजाद कर दिया।

घर जाते वक्त रोजगार की तलाश मे़ भटकते नौजवान, निराश्रित व्यक्ति के बुझे चेहरे और सरकार का परिवार के मुखिया जैसा संरक्षण मुझमें हिम्मत जगाने में कामयाब हो गया कि मुझमें अगर काबिलियत है तो सिर्फ अपनी क्यों औरों की जिंदगी क्यों ना सवारूँ आखिर ये देश और ये लोग भी तो मेरे है।

उस सफर के खत्म होते होते मैं गुलाम नहीं रहा मैने एक राह ढूंढ ली थी जिसपर अब मुझे चलना था सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि उन सबके लिए जिनमें काबिलियत तो है पर संसाधन नहीं।

घर पहुंचकर एक कंपनी का सुभारम्भ किया और नाम रखा ‘भारत कोडर्स’ फिर जोड़ते गया उनको जो इस वैश्विक महामारी के कारण व्वसाय में भारी चोट खा रहे थे और बना दी उनकी डिजिटल दुकान जहाँ वो अपने व्वसाय के अनुसार चला रहे है उनकी अपनी दुकान।

पहले पहले ये बहुत बचकाना था क्योंकि आजतक बस बड़ी कंपनी और फर्म के लिए ही यह सब किया था और इंटरनेट पर दुकान का आइडिया लाकडाउन में रिस्क वाला भी था पर इस कदम ने मेरी और भारत कोडर की पहचान बना दी।

कहते है ना राह में रास्ता नहीं इच्छाशक्ति मंजिल तक पहुँचाती है तो बस हम भी पहुँच गये है उस दुनिया में जहाँ कोरोना पैर की बेड़ियाँ नहीं सफलता की सीढ़ी है।

एक छोटे पैमाने पर शुरू हुआ भारत कोडर्स आज ना सिर्फ वेबसाइट बना रहा बल्कि डिजिटली हर क्षेत्र में पैर पसारने का प्रयत्न कर रहा फिर चाहे वो बैनर पोस्टर हो या इंटरनेट मार्केटिंग और सपनों के महल बना रहा उनके लिए भी जो रोजगार की चाहत लिए बैठे थे और उनके लिए भी जो काम बंद समझकर पैर मोड़े बैठे थे।

पहल छोटी है और शायद अभी सालों लगे इस कंपनी की राह बनने में पर ये शुरुआत बता रही है कि अब भारत सिर्फ सोने की चिड़िया कहलाने तक नहीं रूकेगा बल्कि दाना देकर औरों का पेट भी भरेगा और पंख पसार कर आसमान भी छूऐगा।

हौसलों की ऐसी ही उड़ान देखकर लगता है भारत में कुछ बात है जो यहाँ किसी करुणा मे उठे कदम मजबूत कदम में बदल जाते है और प्रेरणा बनते है अपनी पीढ़ियों के लिए।