दुर्गा पूजा या नवरात्रि के दौरान यूँ तो पूरा देश ही 9 दिन तक त्यौहार और उत्सव के माहौल में डूबा रहता है लेकिन पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा को लेकर विशेष तैयारियाँ हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रही हैं। इस बार की दुर्गा पूजा की तैयारियों में एक ख़ास बात यह है कि हाल ही में तनिष्क द्वारा एक विवादित विज्ञापन के बहाने कई लोगों ने अपनी हिन्दू घृणा का भी जोर शोर से प्रदर्शन किया और ‘औकात’ की बात कर डाली।
लेकिन, औकात की बात करने वालों को शायद इस बात की जानकारी नहीं है कि औकात वाला एक ऐसा क्लब है जो चंद दिनों के नवरात्र में आस्था और संपन्नता की अद्भुत मिसाल पेश करता है। कोलकाता का एक क्लब है श्रीभूमि स्पोर्टिंग क्लब दुर्गा पूजा, जिसने कोलकाता में दुर्गा पूजा के लिए सजाए एक पंडाल में लगभग 25 किलो सोना लगाया है। दुर्गा पूजा के लिए आयोजित यह पंडाल केदारनाथ थीम पर तैयार किया गया है। इस पंडाल में लगाई गई माँ दुर्गा की मूर्ति को 25 किलो सोने के आभूषणों से सुसज्जित किया गया है।
आसान शब्दों में कहा जाए तो तनिष्क विवाद की आड़ में हर इंसान जो हिन्दुओं की औकात भाँपना चाहता है उसे इस दुर्गा पूजा पंडाल के बारे में ज़रूर जानना चाहिए। हिन्दुओं की औकात पर बहस करना तो फिर भी दूर की कौड़ी है, हिन्दुओं के एक क्लब की औकात इतनी विस्तृत है कि मूर्तियाँ सोने में ढंक दी जाती हैं। इसी तरह पिछले साल कोलकाता के संतोष मित्रा चौराहे पर 13 फीट ऊँची दुर्गा मूर्ति लगाई गई थी, जिसे लगभग 50 किलो सोने के आभूषण से सजाया गया था और इसकी कीमत लगभग 20 करोड़ रुपए बताई गई थी। क्योंकि इस मूर्ति को ऊपर से लेकर नीचे तक सोने के आभूषणों से सुसज्जित किया गया था इसलिए इसका नाम ‘कनक दुर्गा’ रखा गया था।
श्रीभूमि स्पोर्टिंग क्लब दुर्गा पूजा द्वारा बॉलीवुड फिल्म ‘पद्मावत’ से प्रेरणा लेते हुए चित्तौड़ महल जैसा मंडप तैयार किया गया था। इस मंडप में माँ दुर्गा की मूर्ति को रानी पद्मावती के तौर पर दर्शाया गया था। इसके पहले साल 2017 में संतोष मित्रा चैराहे पर एक दुर्गा जी की मूर्ति की स्थापना की गई थी जिसे एक ऐसी साड़ी से सजाया गया था जो 22 किलो सोने से बनी हुई थी। ठीक ऐसे ही एक बार इन पंडालों को ग्लोबल वार्मिंग की थीम दी गई थी, इसके बाद हर दुर्गा पूजा पंडाल हरी भरी नर्सरी की तरह सजाए गए थे।
जिससे एक और बात की पुष्टि होती है कि हिन्दू धार्मिक आयोजनों की औकात तो होती है साथ ही साथ उनमें सामाजिक ज़िम्मेदारी और जागरूकता का बोध भी होता है। यह तो सिर्फ एक आयोजन की बात है, हिन्दू धर्म के अनुसार होने वाले लगभग हर आयोजन की औकात विरोध करने वाली जनता की समझ के दायरे से कहीं बाहर है। बल्कि इस प्रकार के सामाजिक विमर्शों में ऐसे शब्दों की आवश्यकता उन्हें ही पड़ती है जिनकी खुद की औकात गुमनामी की कगार पर खड़ी होती है।