जब किसी की जाति उसके लिए अभिशाप बन जाए, काश वे ब्राह्मण नहीं होते।

Opinion

कहते है गरीबी आदमी को सब कुछ भुला देती है, ठीक उसी तरह गरीबी ने ब्राह्मणों को उच्च जाति मे जन्म लेने के गर्व को भी भुला दिया है। क्या आप कल्पना कर सकते है कि आजादी के 70 वर्षों बाद भी किसी समाज को कोई सरकारी सुविधा का लाभ केवल इसलिए नहीं मिलता क्योंकि उन्हे सरकारी आंकड़ों मे और अन्य समाजों मे Highly Priviledged समझा जाता है।

आजादी के 70 वर्षों बाद तक भी इन बॉलीवुड फिल्मों, कुछ कथित समाज सुधारको और कथित राष्ट्र वादी मीडिया ने ब्राह्मण समाज की ऐसी तस्वीर गढ़ दी है की ब्राह्मण नाम सुनते ही हमारे दिमाग मे ढोंगी और धर्म के नाम पर लोगों को ठगने वाले व्यक्ति की तस्वीर आ जाती है, इन फूहड़ बॉलीवुड फिल्मों को देखकर आप कभी कल्पना भी नहीं कर सकते की 21वीं सदी मे भारत जब विश्व गुरु बनने के सपने देख रहा है तो ब्राह्मणों की लगभग 45% आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करती है,अर्थात इन परिवारों की मासिक आय केवल 1250 रुपए महीना है।

चूंकि सरकारी सुविधा पाने का एकमात्र आधार व्यक्ति की जाति होती है तो इसलिए ब्राह्मणों की जाती उनके लिए अभिशाप बन चुकी है क्योंकि ब्राह्मण होने के कारण ही वे सरकार की नजर मे रोटी, कपड़ा,मकान जैसी मूलभूत सुविधाएं पाने के भी हकदार नहीं है।मेरे पास इस बात का कोई प्रामाणिक सबूत तो नहीं है, लेकिन मेरे अनुभव के आधार पर अधिकतर सवर्ण बच्चे 12 वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ देते है क्योंकि उनकी पारिवारिक आय उतनी नहीं है की उनके माता पिता उनकी महंगी पढ़ाई का खर्च वहन नहीं कर सकते और न ही उनको कोई सरकारी सहायता मिलती है की वे अपनी पढ़ाई पूरी कर सके।

यह एक विचलित कर देना वाला तथ्य है की भारत सरकार मुस्लिम मौलानाओ को हर साल 1000 करोड़ रुपए तनख्वाह देती है तो हज यात्रा पर लगभग 200 करोड़ रुपए सब्सिडी देती है लेकिन ऐसी कोई सहायता राशि हिन्दू ब्राह्मण पुजारियों को नहीं दी जाती है,यही कारण है की ब्राह्मण पुजारियों सहित लगभग सभी सवर्ण जातियाँ अल्पसंख्यकों द्वारा उनके संसाधनों पर कीये जा रहे नियंत्रण को देखकर ठगे से रह जाते है|इसका परिणाम लोकसभा और विधानसभा मे भी देखा जा सकता है जहां उनका प्रतिनिधित्व दिन प्रतिदिन काम होता जा रहा है, आप जानकर चौंक जाएंगे की सवर्ण देश की 131 लोकसभा सीटों और 1225 विधानसभा सीटों पर वोट तो दे सकता है लेकिन चुनाव नहीं लड़ सकते है।यह देश का दुर्भाग्य ही है की जहां विदेशों मे प्रतिभा को प्रोत्साहित किया जाता है वहीं भारत मे 99%अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी मनचाहे कॉलेज मे दाखिला नहीं मिल पता।

भारत सरकार ने साल 2020 मे अनुसूचित जनजाति के लिए 53000 करोड़ रुपए का बजट घोषित किया गया है लेकिन इन हजारों करोड़ रुपए मे उन ब्राह्मणों के लिए कुछ भी नहीं है जो भिक्षा मांगकर गुजारा करते है और झोपड़ी मे रहते है|सवर्ण विद्यार्थियों को परीक्षाओ मे अन्य विद्यार्थियों की तुलना मे दोगुनी फीस देनी पड़ती है जबकि उस अनुपात मे उनको सीट भी नहीं मिल पाती है, हाल ही मे भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए 59000 करोड़ की छात्रवृति का प्रस्ताव मंजूर की लेकिन वह समाज जो मंदिरों मे पूजा करता हो, भिक्षा मांगकर परिवार का पेट पालन करता हो उसके लिए कोई योजना नहीं है की उसके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके। कुछ दलित संगठनों द्वारा दलितों के साथ होने वाले भेदभाव का एकमात्र उत्तरदायी ब्राह्मणों को बताया जाता है लेकिन आप खुद सोचे जो व्यक्ति झोपड़ी मे रहता हो, गरीबी रेखा के नीचे हो,भिक्षा मांगने को मजबूर हो वो क्या किसी व्यक्ति का शोषण कर सकता है।