अब इसे उसकी आपबीती कहे या साहस जो आज एक बेटा अपने पिता को खोकर भी दुनिया को बता रहा है कि कैसे तार – तार हो चुका है उसका भरोसा हर उस व्यक्ति से जो कहता था कोरोना की इस लड़ाई में वो उसके साथ है और कैसे आपके परिवार की सुरक्षा सिर्फ आपके हाथ है।
दिल्ली के रहने वाले शैलेन्द्र कुमार जिनके पिता की हाल ही में कोरोना से मृत्यु हुई या यूं कहे सरकार और प्रशासन पर विश्वास करने की सजा मिलीं।
शैलेन्द्र पुत्र स्व. श्री राजेन्द्र कुमार शर्मा आप सबको कोरोना के उपचार के लिए हो रही सरकार और अस्पतालों की लापरवाही के बारे में अवगत कराते हुए कहते है कि मैंने अपने पिताजी का कोरोना टेस्ट एक प्राइवेट लैब से करवाया और दुर्भाग्य से उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। तब हमने इस देश के एक सच्चे नागरिक की तरह सरकार की बात को मानते हुए अपने अच्छे भले स्वस्थ पिताजी को कोरनटाइन सेंटर भेज दिया और वहा पर दो दिन ही रखने के बाद पिताजी को LNJP अस्पताल, नई दिल्ली, में ६-जून को शिफ्ट कर दिया गया जिसकी जानकारी भी हमे पिताजी से फ़ोन द्वारा ही प्राप्त हुई। हम फिर भी इस उम्मीद में रहे कि अस्पताल में उनका सही उपचार हो जायेगा और वो जल्द ही ठीक होकर हमारे बीच घर पर होंगे। पर जो हमने देखा वो भरोसे लायक नहीं था कि LNJP अस्पताल में तो लापरवाही की इन्तेहाह हो रही थी।
जितनी भी बार पिताजी से बात हो पाई तो यहीं सुना कि पुरे दिन में एक बार डॉक्टर आता है और इसके अलावा तो पानी तक कोई पूछने नहीं आता है। इसके अलावा वो दुखी मन से यह भी बताते कि यहा पर खाने को गेट पर रख जाते है अगर आपसे लाया जाये तो ठीक नहीं तो भूखे ही रहना पड़ता है।
यह सब जानने के बाद हम जब भी अस्पताल प्रबंधन से इस बारे में बात करने की कोशिश करते तो हमे कभी CMO और कभी MS ऑफिस का रास्ता दिखा देते और कोई भी हमे किसी से मिलने ही नहीं देता ना कुछ बताता ही।
हम रोजाना फ़ोन पर और पर्सनली जाकर पिताजी के स्वस्थ की जानकरी लेने की कोशिश करते पर कोई कुछ नहीं बताता था और हमे इधर उधर भटकाते रहते।अस्पताल की लापरवाही की इन्तेहाह तो तब हो गई जब उनका वार्ड चेंज कर दिया गया और किसी को भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी और हमे पुरे २४ घण्टे लग गए ये पता करने के लिए की पिताजी को किस वार्ड में शिफ्ट किया है और यह सब हमारी हिम्मत को तोड़ रहा था।पुरे एक दिन के प्रयास के बाद मुझे ज्ञात हुआ की उन्हें वार्ड संख्या २९ में शिफ्ट किया गया है पर उसके बाद से उनकी तबियत हर दिन ख़राब होने लगी और डॉक्टरस की लापरवाही और टेस्टिंग ऐटिटूड की वजह से १६-जून-२०२० को उनकी अकस्मात मृत्यु हो गई।
मै और मेरा परिवार एक बार को जैसे इसको मानने से इंकार ही कर बैठा पर सच यही था कि एक स्वस्थ व्यक्ति को कोरोना नहीं बल्कि यह तंत्र अपना शिकार बना ले गया और हम देखते रह गये।अंतिम बार १५-जून २०२० को सुबह १०:३० पर जब मेरी पिताजी से बात हुई थी तो मेंरे पूछने पर उन्होंने कहा था की कोई खाना खिलाने आएगा तो खा लूंग क्योंकि वहां पर कोई उन्हें न तो खाना दे रहा था ना पानी।
मैं प्रतिदिन उनकी जानकारी लेने के लिए नारियाल पानी भिजवाता था जो शायद उन्हें कभी मिला ही नहीं। मेंरे प्रतिदिन निवेदन और फ़ोन करने के बाद भी कोई उन्हें ना तो कोई डॉक्टर ने उन्हें प्रॉपर ट्रीटमेंट दिया और ना ही खाना – पानी जिसके वजह से हमने अपने पिताजी को हमेशा के लिए खो दिया और दुर्भाग्य यह है कि इसमें कोरोना से ज्यादा जिम्मेदार अस्पताल प्रशासन और सरकार है जो कहती तो है कि हमपर भरोसा रखिए पर उस भरोसा का गला भी खुद ही घोंटती है।
इस पूरे प्रकरण का मेरे दिमाग पर ऐसा असर है कि कुछ सवाल जेहन घर कर गए है और २४ घंटे मुझे परेशान कर रहे है जिसमें से कुछ मुख्य सवाल मैं यहाँ भी रख रहा –
१. मैंने सरकार की बात मानकर आखिर पिताजी को हॉस्पिटल क्यों भेजा?
२. क्या अस्पताल वालों ने इलाज के नाम पर कोई टेस्टिंग तो नहीं की ?क्योकि उन्हें कोई बड़ी बीमारी नहीं थी और और वो पूरी तरह स्वस्थ थे और साथ ही उन्होंने पुरे १३ दिन अस्पताल के असंवेदनशील और खराब व्यवथा में व्यतीत कर लिए थे।
३. पिताजी को कभी ग्लूकोस क्यों नहीं लगाया गया?
४. पिताजी को वार्ड में ही क्यों मरने दिया गया अगर उनकी तबियत ज्यादा ख़राब थी तो उन्हें ICU में शिफ्ट क्यों नहीं किया गया?
५. परिवार वालो को कभी भी कोई जानकारी क्यों नहीं दी गई और हमारे फ़ोन करने पर नहीं हमें सही जानकारी क्यों नहीं दी गई?
६. मृत्यु प्रमाण पत्र में सारी इंफॉर्मेशंस गलत कैसे हो गई?
७. अस्पताल अभी तक ट्रीटमेंट और डिस्चार्ज समरी (Treatment Summary) क्यों नहीं दे रहा है?
८. मैंने ट्विटर पर दिल्ली सरकार और LNJP को बहुत बार इस बदहाली के बारे में अवगत कराया थ पर शायद कोई भी ट्विटर नहीं देखता है। ऐसा क्यों?
९. इन ख़राब, असवदेनशील सरकारी प्रणाली का जिम्मेदार कौन है और कौन जिम्मेदार है मेरे पिताजी की मृत्यु का?
१०.मै अस्पताल नहीं जाता तो उनकी मृत्यु की खबर भी नहीं मिलती इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ?
इन सब सवालों के जवाब मुझे जबतक नहीं मिलते तब तक मै इसको दोहराता रहुंगा क्योंकि आज अगर मैनें चुप्पी साध ली तो कल हजारों शैलेन्द्र घर के किसी कोने में बैठे नम आंखों के साथ अपने घरवालों का वियोग झेलेंगे वो भी बिना किसी गलती के बस सरकार और प्रशासन की अनदेखी की वजह से।