भारत के नागरिक उड्डयन क्षेत्र में एक बार फिर से ऐसा हादसा हुआ जिसने न केवल कई निर्दोष जिंदगियाँ लील लीं, बल्कि उस भरोसे को भी झकझोर कर रख दिया जो आम नागरिकों का उड़ानों और विमानन तंत्र पर होता है। एयर इंडिया के इस हालिया हादसे ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है — क्या यह केवल एक मानवीय भूल थी, या फिर हमारे सिस्टम की गहरी खामियाँ इसके लिए जिम्मेदार हैं?
जिस दिन यह खबर आई कि एयर इंडिया की एक विमान उड़ान हादसे का शिकार हो गई है, उस दिन केवल एक जहाज नहीं गिरा—आसमान में भरोसे की ऊँचाई भी टूटकर ज़मीन पर बिखर गई। जो लोग चंद घंटों में अपनों से मिलने की उम्मीद में विमान में सवार हुए थे, वे कभी ज़िंदगी के अगले पड़ाव तक पहुँचे ही नहीं। उस पल ने न जाने कितने घरों में मातम भर दिया और कितने बच्चों को अनाथ कर दिया। हर हवाई सफर एक भरोसे की डोर पर टिका होता है—भरोसा उस तकनीक पर, उन पायलटों पर, एयर ट्रैफिक कंट्रोल की सतर्कता पर, और उस व्यवस्था पर जो हमें यकीन दिलाती है कि हम सुरक्षित हैं। पर जब विमान गिरता है, तो वह केवल धातु और ईंधन से नहीं, बल्कि उन वादों से भी जलता है जो हमने अपने नागरिकों से किए होते हैं।
हर हवाई जहाज़ में सफर करने वाला यात्री उस तकनीकी सुरक्षा पर विश्वास करता है, जिसे ‘फूलप्रूफ’ माना जाता है। लेकिन जब इस तरह की दुर्घटनाएँ होती हैं, तो तकनीकी चूक, पायलट प्रशिक्षण, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, मौसम की चेतावनियाँ, विमान की स्थिति — सब कुछ कठघरे में आ जाता है। इस हादसे में प्रारंभिक जांच से यह बात सामने आ रही है कि या तो पायलट द्वारा अंतिम समय में लिए गए निर्णय में त्रुटि थी, या फिर ग्राउंड कंट्रोल से मिली जानकारी में अस्पष्टता रही। लेकिन इससे बड़ी चिंता का विषय यह है कि क्या यह त्रुटि अकेले एक व्यक्ति की थी, या फिर हमारे विमानन तंत्र में कहीं कोई स्थायी ढिलाई व्याप्त है? क्या पायलटों की ट्रेनिंग, विमान की नियमित जांच, और आपात स्थितियों से निपटने के लिए बनाई गई गाइडलाइन्स पर्याप्त और प्रभावी हैं?
हमारा विमानन क्षेत्र तेजी से विस्तार कर रहा है। लेकिन क्या यह विस्तार गुणवत्ता और सुरक्षा को पीछे छोड़कर केवल संख्या और मुनाफे की दौड़ बनता जा रहा है? एयर इंडिया जैसी राष्ट्रीय वाहक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सुरक्षा के हर मानक का पूर्ण रूप से पालन करे। परंतु यदि वही संस्था इस तरह के हादसे का शिकार होती है, तो यह पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाता है। इस हादसे ने एक और बात साफ़ कर दी है—हमारा विमानन तंत्र तेज़ी से फैल तो रहा है, लेकिन वह उतनी ही तेज़ी से संवेदनशीलता और ज़िम्मेदारी से दूर भी होता जा रहा है। निजीकरण की दौड़, खर्चों में कटौती और मुनाफे की होड़ में कहीं यात्रियों की सुरक्षा पीछे छूट रही है।
यह हादसा महज एक समाचार नहीं है, यह एक चेतावनी है—यदि अब भी हम नहीं जागे, तो अगला हादसा कहीं और, किसी और के साथ हो सकता है। सरकार, एयरलाइंस और नागरिक उड्डयन विभाग को अब महज़ बयानबाज़ी से ऊपर उठकर एक निर्णायक और पारदर्शी कदम उठाना होगा। अब आवश्यकता है केवल दोषारोपण की नहीं, बल्कि एक ठोस, पारदर्शी और निष्पक्ष जांच की। केवल दोषियों को सज़ा देना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि इस पूरे ढांचे की समीक्षा करनी होगी — तकनीकी संसाधनों से लेकर मानव संसाधनों तक।